मैं आरक्षण का समर्थन करता हूँ लेकिन आर्थिक आरक्षण का न कि जातिगत आरक्षण का, मैं यह मानता हूँ कि समाज का एक तपका हमेशा मुहाने पर रहा लेकिन अब यह स्थिति नहीं है, अब समय आ गया है कि आरक्षण आर्थिक आधार पर मिलना चाहिए ।
हमें आरक्षण से कोई आपत्ति नहीं है, किसी व्यक्ति को आरक्षण दिया गया और वो किसी सरकारी नौकरी में आ गया अब उसका वेतन ₹5500 से ₹50000 व इससे भी अधिक है , पर जब उसकी संतान हुई तो वह भी पिछड़ी ही पैदा हुई ,
और ... हो गई शुरुआत ।
यही कारण है कि आरक्षण आर्थिक आधार पर होना चाहिए, और भी उदारहण हैं जिनके बारे में मैं आगे अपना पक्ष रखूँगा ।
आरक्षण आर्थिक आधार पर होना चाहिए |
▪क्या है SC-ST Act?▪
अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के लोगों पर होने वाले अत्याचार और उनके साथ होनेवाले भेदभाव को रोकने के मकसद से अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार रोकथाम) अधिनियम, 1989 बनाया गया था. जम्मू कश्मीर को छोड़कर पूरे देश में इस एक्ट को लागू किया गया. इसके तहत इन लोगों को समाज में एक समान दर्जा दिलाने के लिए कई प्रावधान किए गए और इनकी हरसंभव मदद के लिए जरूरी उपाय किए गए. इन पर होनेवाले अपराधों की सुनवाई के लिए विशेष व्यवस्था की गई ताकि ये अपनी बात खुलकर रख सके. हाल ही में एससी-एसटी एक्ट को लेकर उबाल उस वक्त सामने आया, जब सुप्रीम कोर्ट ने इस कानून के प्रावधान में बदलाव कर इसमें कथित तौर पर थोड़ा कमजोर बनाना चाहा.
एक बार यह भी मान लेते हैं कि यह आरक्षण भी अभी तक जैसा मिल रहा था मिलता रहे, लेकिन किसी आदिवासी या दलित व्यक्ति द्वारा पुलिस में शिकायत करने पर बिना किसी भी जानकारी के सामान्य वर्ग के लोगों को हवालात में भेज दिया जाएगा और जबकि माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा व्यवस्था इसमें सुधार किया जाता है तो केंद्र सरकार इस पर वोटों की राजनीति करती है जो कि ग़लत है और पूर्णत: अस्वीकार्य है। मैं किसी भी राजनीतिक दल के पक्ष या विपक्ष में नहीं हूँ, मैं यह नहीं कहता कि आप इन्हें वोट दें या उन्हें वोट दें लेकिन समय आ गया है जब पुराने ढर्रे पर चल रहे नियमों और क़ानूनों में बदलाव करना चाहिए, लेकिन जिन्हें बदलाव करना है वही वोटों और सत्ता की राजनीति करने लगें ऐसे नेताओं, ऐसे राजनीतिक दलों पर धिक्कार है ।
🖊सुप्रीम कोर्ट ने SC/ST एक्ट में किया था यह बदलाव🖋
सुप्रीम कोर्ट ने एससी/एसटी एक्ट के बदलाव करते हुए कहा था कि मामलों में तुरंत गिरफ्तारी नहीं की जाएगी. कोर्ट ने कहा था कि शिकायत मिलने पर तुरंत मुकदमा भी दर्ज नहीं किया जाएगा. शीर्ष न्यायालय ने कहा था कि शिकायत मिलने के बाद डीएसपी स्तर के पुलिस अफसर द्वारा शुरुआती जांच की जाएगी और जांच किसी भी सूरत में 7 दिन से ज्यादा समय तक नहीं होगी. डीएसपी शुरुआती जांच कर नतीजा निकालेंगे कि शिकायत के मुताबिक क्या कोई मामला बनता है या फिर किसी तरीके से झूठे आरोप लगाकर फंसाया जा रहा है? सुप्रीम कोर्ट ने इस एक्ट के बड़े पैमाने पर गलत इस्तेमाल की बात को मानते हुए कहा था कि इस मामले में सरकारी कर्मचारी अग्रिम जमानत के लिए आवेदन कर सकते हैं.
🏴टिप्पणियांसंशोधन के बाद अब ऐसा होगा SC/ST एक्ट🏴
एससी\एसटी संशोधन विधेयक 2018 के जरिए मूल कानून में धारा 18A जोड़ी जाएगी. इसके जरिए पुराने कानून को बहाल कर दिया जाएगा. इस तरीके से सुप्रीम कोर्ट द्वारा किए गए प्रावधान रद्द हो जाएंगे. मामले में केस दर्ज होते ही गिरफ्तारी का प्रावधान है. इसके अलावा आरोपी को अग्रिम जमानत भी नहीं मिल सकेगी. आरोपी को हाईकोर्ट से ही नियमित जमानत मिल सकेगी. मामले में जांच इंस्पेक्टर रैंक के पुलिस अफसर करेंगे. जातिसूचक शब्दों के इस्तेमाल संबंधी शिकायत पर तुरंत मामला दर्ज होगा. एससी/एसटी मामलों की सुनवाई सिर्फ स्पेशल कोर्ट में होगी. सरकारी कर्मचारी के खिलाफ अदालत में चार्जशीट दायर करने से पहले जांच एजेंसी को अथॉरिटी से इजाजत नहीं लेनी होगी.
आरक्षण का लाभ उन्हें मिले जिन्हें इसकी सही मायनों में आवश्यकता है लेकिन इसके आधार पर राजनीति गुंडागर्दी और सरकारी ज़मीनों पर क़ब्ज़ा क़तई नहीं होना चाहिए और यह हो रहा है, हम यह नहीं कहते की सत्तापक्ष बीजेपी ही इस पर हाँथ पर हाँथ धरे बैठी है, इनके स्थान पर वर्तमान में कांग्रेस भी होती तो इनका भी यही रवैय्या होता, अब प्रश्न यह है कि कोई राजनीतिक दल नहीं तो फिर किस को वोट करें, अब कहीं वोट तो करना है, तो मेरा यह मानना है आप जहाँ वोट देना चाहें अपनी समझ और अपने विवेक से दें लेकिन इस मुद्दे पर सभी को मुखर होना चाहिए और अपनी पूरी ताक़त के सांथ इसका विरोध पुरज़ोर हो यदि आवश्यकता पड़े तो NOTA भी विकल्प है लेकिन आप सुनिशित्त करें कि आपकी विधानसभा या लोकसभा प्रत्याशी इस बारे में क्या राय रखते हैं, उनसे लिखित में लें और सत्ता में आने के बाद वह इस बारे में क्या क़दम उठाएँगे? यदि सत्ता में आने के बाद भी वह अकर्मणय रहते हैं तो ऐसे प्रतिनिधियों का सार्वजनिक बहिष्कार करें जैसा कि हम अभी मीडिया में देख पा रहे हैं, ऐसे प्रतिनिधि (जिन्हें हम पार्षद, विधायक, सांसद भी कहते हैं) सार्वजनिक तौर पर अपनी उपेक्षा से काफ़ी आहत होते हैं और इनकी अकर्मण्यता पर इन्हें शर्मसार करना ही बेहतर है ।
यदि हम आज नहीं जागे तो आने वाली पीड़ियाँ हमें हमेशा कोसती रहेंगी।
यदि हम आज नहीं जागे तो आने वाली पीड़ियाँ हमें हमेशा कोसती रहेंगी।